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COCHLEA

2016 की बात है।मेरे पास एक बच्चा आता है, जिसका नाम फैज़ल था। तब वो 3 साल का था। और बहुत कुछ बात नहीं बोलता था। यह मान के चलीए की वे समझता तो था सब कुछ, लेकिन बोल नहीं पाता था। तो उसके पेरेंट्स और उसके नाना नानी, इसको मेरे पास लाए थे स्पीच थेरेपी के लिए।

हमारा जो प्रोटोकोल है,उसको फॉलो करने के बाद सारा असेसमेंट करने के बाद मैं इस नतीजे से पहुँच कि उसको आर्टिस्टिक फीचर्स हैं। और वो बॉर्डरलाइन ऑटिज़म में आता है। उसके माता पिता दोनों HIGHLY एजुकेटेड है और अबूधाबी में रहते थे। बच्चे का स्पीच में कुछ डेवलपमेंट नहीं होगा, ये सोच के परेशान थे .अपने बच्चे को भुवनेश्वर लाएँ, जो कि उनके native प्लेस है . जब मैंने उन्हें बताया की आपके बच्चे को ऑटिज्म है। वे बहुत ज्यादा दुखी हो गए। लेकिन उनको अच्छे से समझाने के बाद थोड़ा सा रिलैक्स फील किया और तुरंत उसका स्पीच थेरेपी स्टार्ट करने के लिए राजी भी हो गए।

उन दिनों मैं अपना सेंटर अकेले संभाल पी।ती थी और मेरे साथ एक लड़की थी जिसका नाम बबीता। और रिसेप्शनिस्ट का काम करती थी और थेरेपी सारा मैं ही देखती थी। मुझे अच्छे से याद है मेरे पास टाइम की कमी थी। फिर भी मैं टाइम उसके लिए निकाल और उसको जो टाइम पिट दिया वह 2:30 का। और तब मार्च का महीना था, फ़िर। भीं उन लोग राजी हो गए आने के लिए। मैं आश्चर्य हो गई कि ये लोग कैसे राजी हो गए इतने गर्मी में आने के लिए फिर भी उन्होंने हामी भरी और उसका 2:30 को थेरेपी स्टार्ट हुआ।

उसकी नानी और नाना दोनों उसे थैरेपी के लिए लेकर आते थे। मैं नीचे बिठाकर बच्चों के साथ ऐक्टिविटी करवाती थी। कभी कभी तो मैं बच्चों को अपनी गोदी में भी ले लेती थी। तब फैज़ल 3 साल का था। उसकी आंखें बहुत ज्यादा इनोसेंट थे। और उसका स्माइल….. मैं क्या बताऊँ उसकी स्माइल को मैं देखती तो यह सोचती बस उसको ही देखती रहूँ। बहुत ही प्यारा सा और शांत बच्चा था। आज 12 साल का हो गया है। और उसको मैं जब देखती हूँ तो मुझे मेरा गर्दन ऊपर करके उसे देखना पड़ता है। अब यु इतना लम्बा हो गया है। तब तो छोटा सा था मैं उसको अपनी गोदी में लेकर उसको ऐक्टिविटी करवाती थी।

थेरेपी के शुरुआती दिनों में कुछ भी नहीं बोलता। उसमें जितना कोशिश करूँ, बस स्माइल करता था और सारी चीजों को समझता था, लेकिन बोलता नहीं। उस समय मेरे सेंटर में हियरिंग ASSESSMENT भी होता THA .तो उसके चलते एक दीवार में कान के अंदरूनी हिस्से का एक पिक्चर था। उस पिक्चर में स्नेल जैसा स्ट्रक्चर था, जिसका नाम था COCHLEA. फैज़ल ने उसको पॉइंट करके पूछा की क्या है? और फिर मैंने बताया कि यह “कॉक्लिया है।“ तब उसका पहला वर्ड वही था COCHLEA. मैं बहुत ही खुश हो गई। cochlea सुनने के बाद मुझे लगा कि उसकी इसमें ज्यादा इंटरेस्ट है। फिर में उसीके आधार करके उसकी स्पीच एंड लैंग्वेज का डेवलपमेंट के लिए अपना प्लानिंग की और उसमें कुछ ही दिनों में बहुत अच्छे डेवलपमेंट आने शुरू हो गए।

यहाँ पे मैं बताना चाहूंगी फैजल की नानी माँ का डेडिकेशन बहुत ही अच्छा था। वो तो देखने लायक था. उसकी नानी माँ दोपहर के ऑफिस से आती थी और फिर अपने नाति को लेकर मेरे पास थेरेपी के लिए आते थे। और हमेशा मुस्कराते और बहुत अच्छे से बात करती थी। उनका मेरे ऊपर जो भरोसा था, उस भरोसे को मैंने डगमगाने नहीं दिया। मेरा हमेशा से यही कोशिश रहता है कि इन बच्चों का स्पीच, लैंग्वेज के साथ सोशल स्किल भी डेवलप होना चाहिए।। कुछ ही दिनों के थेरेपी के बाद फैजल बोलने लगा और बहुत अच्छे से कम्यूनिकेशन करना स्टार्ट कर दिया था। फिर उसका एडमिशन। एक स्कूल में होता है। और स्कूल में भी फीडबैक बहुत अच्छा रहा और बहुत ही अच्छा स्टूडेंट्स बना। और फिर अपनी लाइफ में आगे बढ़ता। रहा।

16/8/2025 , बहुत दिनों के बाद उससे मिली और उससे बात की।उससे. से बात करने मैं इतनी खुश थी ,मानो के अंदर से सुकून सा महसूस होता था कि यह वही. बच्चा है, जिसको मैंने थेरेपी दी थी। यही वो बच्चा है जिसका पहला शब्द था-COCHLEA आज भी मैं उसको पूछती. हूँ कॉक्लिया याद है आपको? तो वो मुस्कुराता है और बोलता है “हाँ, माम् याद है।“ इस बार उनके मम्मी का एक नया क्न्सर्न था। उसके बारे में मैं आपको बताना चाहूंगी। क्योंकि ज़्यादातर माता पिता का ये क्न्सर्न रहता है. उन्होंने बताया।‘’ फैज़ल इमोशनली किसी के साथ उतना अटैचमेंट शो नहीं करता है। जब भी हमारे घर में कुछ भी ऐसा डिस्कशन होता है तो वो उसमें इन्वॉल्व नहीं होता है।“

मैंने उनको एक वर्ड बताई। जिसका नाम है ENTANGLEMENT. मैंने उनको समझाया, फैजल एक दिव्य आत्मा है। और उसको पता है उसको क्या करना है। ओह खुद को सँभालना सिख गया है। आप उसको इमोशनली डिस्टर्ब नहीं कर सकते। क्योंकि वह खुद को ENTANGLEMENT से दूर रखता है। वह कोई भी रिलेशनशिप अपना इमोशन शो करता है लेकिन उसमें फंसता नहीं। आपको एक सच्चाई बताना चाहूंगी। यह उतना आसान नहीं होता। बल्कि हमें योगा क्लास से यही सिखाया जाता है कि आपको. रिलेशनशिप तो बनाना है, लेकिन उसमें उलझना नहीं है। ये सुनने में जितना आसान लगता है करने में उतना ही मुश्किल होता। फैजल के पास ये SKILL तो पहले से ही मौजूद है। इसको CHANGE करने के बारे में नहीं सोचना है। बल्कि उसको ACCEPT करके खुश होना है।

हमारा आधा जिंदगी तो. रिलेशनशिप में उलझने में ही चला जाता है फिर उसको सुलझाने में चला जाता है। भगवान के लिए टाइम कहाँ निकाल पाते हैं? भगवान बहुत सारे दिव्य. गुन ऑटिस्टिक बच्चों में भर के BHEJTE हैं, लेकिन वह हमें दिखाई नहीं देता है क्योंकि हम सोचते. है. हम बहुत ही बेहतर है ,उसे बेहतर है. बहुत कुछ जानते हैं। और बहुत ही इंटेलीजेंट हैं। लेकिन सच्चाई कुछ और ही है। जहाँ पर इन्टेलिजेन्स खत्म होता है, वहाँ पे आध्यात्मक की शुरुआत होता है। हमें तो बस अपने देखने का नजरिया ही बदलना है। इसलिए तो हम आर्टिस्टिक. बच्चों ko दिव्यांगजन बोलते हैं। उनकी दिव्यता को जब आप समझ जाएंगे, तब आप की लाइफ आसान हो जाएगा। फैज़ल की मम्मी को ये बताया कि ऑटिज़म एक लाइफ लॉन्ग प्रॉब्लम है। उसे उसी के साथ जीना है। तो हमें बस उसे इतना सीखाना है, कौन से सिचुएशन में वो कैसे डील करेंगे? लेकिन फैज़ल बहुत ही सुलझा हुआ बच्चा है और वो अपने आप को संभाल लेता है। भगवान से प्रार्थना करूँगी कि आगे जाके उसको। कुछ भी परेशानी न हो, अपनी लाइफ में ऐसे ही डेवलपमेंट करते जाएं। वो एक डिवाइन सोल है और उसको हमेशा ही मदद मिलेंगे।

ये सुनकर उसकी मम्मी को तसल्ली हुई और वो खुशी खुशी घर गई। यहाँ पर मैं आप लोगों को बताना चाहूंगी की। मामा के कर्म का फल भी बच्चों को मिलता है। उनकी माँ बहुत ही देवी के टेड थे। और अपने बच्चे के लिये जॉब तक उन्हें छोड़ था। समय रहते अगर हम समाधान करते है तो उसका नतीजा कुछ अलग ही होता है। भगवान दयालु हैं, वो हमेशा रास्ता दिखाते हैं, बस रास्ते में चलना हमारे हाथ में होता है।

Autism and spirituality

12/3/25 सुबह के 11 बजे थे. उस दिन हमारी संजीवनी में पेरेंट मीटिंग थी. इस दिन हम माता-पिता के मन में जो भी SAWAL होती है, उसका उत्तर देने का प्रयास करते हैं। उस दिन भी मुझे कुछ सवालों के जवाब देने थे. मैं उनके प्रश्नों का सही उत्तर देने या UNKO KYA SUNNA HAI WAHI SUNANE KE BICH MEIN संघर्ष कर RAHI THI । बहुत देर तक सोचने के बाद मैंने फैसला किया कि मुझे उन्हें सच बताना है और उनसे सच छिपाना नहीं है।

यहां माता-पिता द्वारा पूछे गए कुछ प्रश्न हैं और मैं अपने उत्तर आपके साथ साझा करूंगा। प्रश्न 1:- मेरा बच्चा कभी-कभी बिना किसी कारण के अपने आप हंसने लगता है। ये सवाल सुनने के बाद मैंने उनसे पूछा कि क्या वह कभी ऐसे ही मुस्कुराती हैं या हमेशा ऐसे ही मुस्कुराती हैं? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा- मैडम, वह हमेशा ऐसे ही मुस्कुराती हैं और पूरे दिल से मुस्कुराती हैं. अब मैंने unhe समझाना शुरू किया, लेकिन उसी सवाल के साथ मेरा सवाल था:-"क्या आप मुझे बता सकते हैं कि पिछली बार आप ne kab dil kholke hasen थे?" उन्होंने कुछ देर सोचा और फिर कुछ इस तरह उत्तर दिया:-( " नहीं बता सकता मैडम, हम तनाव में जी रहे हैं ,हमें यह भी नहीं पता कि हम कभी खुश थे या नहीं। सब कुछ ठीक था लेकिन साहिनू (BACHE KA NAAM)के हमारे जीवन में आने के बाद सब कुछ बदल गया।" बोलते-बोलते वह रो पड़े उनका जवाब सुनकर मुझे जितना दुख हुआ, उतना ही आश्चर्य भी हुआ कि लोग ऐसा कैसे सोच सकते हैं? सच कहूं तो मुझे उनके विचारों पर बहुत दुख हुआ।

मैं कुछ देर के लिए चुप हो गया, मैंने वहां मौजूद दूसरे अभिभावकों को देखा, उनकी आंखों में भी यही सवाल था। UNKE के सवाल का जवाब देने से पहले मैंने UNSE से एक सवाल पूछने का फैसला किया। मेरा सवाल था :-

"आपको अपना दिल खोलकर हंसने ke liye क्या chahiye hota है। चलो अब, hum yahin par aisa kuch karenge ताकि आप अपना दिल खोलकर हंस सकें। मैं आपको 10 मिनट दूंगा। सोचिए कि आप यहां क्या कर सकते हैं कि आप पूरे दिल से हंस सकें।” 10 मिनट बीत जाने के बाद मैंने उनसे पूछा कि क्या वे तैयार हैं? जवाब सुनकर आप हैरान रह जाएंगे. unka का जवाब कुछ इस तरह था ''1. हम इतने काम के दौरान सोच नहीं पाते, हमें और समय चाहिए. 2) मुझे दोस्तों ke saath rahne se khusi milti hai3) किसी अच्छे होटल में खाना खाकर मैं खुश हो जाऊंगा 4) मुझे कोई गिफ्ट मिलेगा तो मैं खुश हो जाऊंगा.5)kitty part mein khusi milti hai unka का जवाब कुछ इस तरह था. उनका जवाब सुनने के बाद मेरे लिए उनके सवाल का जवाब देना बहुत आसान हो गया.

"आपने पहले ही मेरे प्रश्न का उत्तर दे दिया है। अब आप जान सकते हैं कि खुश रहने या मुस्कुराने के लिए आपको कितने कारणों की आवश्यकता है। हाँ या नहीं। यह पूर्ण सत्य है। इसके बारे में सोचें, इस उम्र तक पहुंचने के बाद भी, हम अभी भी खुद को खुश रखने के लिए bahari chizon पर भरोसा करते हैं, है ना? एक पल के लिए सोचें कि क्या आप ऐसा कुछ कर सकते हैं, जहां आपको कुछ भी नहीं करना पड़े और आप वहां बैठे-बैठे ही मुस्कुराहट महसूस कर सकें?

यदि हम जानते हैं कि हम बिना किसी कारण के कैसे हंस सकते हैं और यदि कोई बिना किसी समस्या के ऐसा कर सकता है.. तो हम इसके बारे में इतने चिंतित क्यों हैं और उस व्यवहार को गलत क्यों साबित करना चाहते हैं? यहां हमें खुद से यह सवाल पूछना होगा, "मैं जो सोचता हूं वह सही है? या क्या मैं सिर्फ समाज के प्रभाव के कारण ऐसा सोच रहा हूं?" देखिए, यदि आप किसी व्यक्ति में कुछ बुरा ढूंढना चाहते हैं, तो आपको उसमें हर चीज गलत दिखाई देगी, भले ही उसमें कुछ भी गलत न हो। यह एक स्पष्ट तथ्य है कि अगर हम किसी बच्चे में हमेशा गलतियां ढूंढते हैं, तो उसका अच्छा व्यवहार भी गलत lagne lagega. क्या हम सोचते हैं कि हमें खुश रहना चाहिए?

मैं आपको यहां बताना chahati हूं कि ऑटिस्टिक बच्चे अक्सर बिना किसी कारण के हंसते और रोते हैं। तकनीकी भाषा में ise irrelevant laughing & crying kahate hai. जो कुछ भी हमारे लिए महत्वपूर्ण नहीं है वह उनके लिए बहुत मूल्यवान है क्योंकि वे khud ko relax करना और खुद को खुश रखना जानते हैं।lekin unka tarika alag hota hai. यदि आप उसकी मुस्कुराहट का कारण नहीं हैं तो उसके लिए चिंता करने का कोई कारण नहीं है? बल्कि अगर आप उसे मुस्कुराते हुए देखें तो आपको भी थोड़ा खुश हो जाना चाहिए, कुछ देर के लिए उसकी मुस्कुराहट में खो जाना चाहिए, महसूस करना चाहिए कि उसकी मुस्कुराहट में कुछ भी milavat नहीं है, उसकी मुस्कुराहट कितनी मासूम है, पवित्रता से भरी हुई है ,खुशियों से भर जाओगे ….क्योंकि यह निर्महा, निर्मया, पवित्रता से भरपूर मुस्कान आपको कहीं और नहीं मिलेगी।

हम हमेशा सोचते हैं कि हम उसे बदल देंगे, हम उसके सभी कार्यों पर सवाल उठाते हैं लेकिन सच्चाई उससे कुछ अलग है, वह हमें हमारे जीवन में कुछ सिखाने आया है। आइए आज से अपनी सोच बदलें, उसे पूरी तरह अपनाएं और उससे सीखें। कुछ माता-पिता ने मेरी बात ko स्वीकार कर ली और कुछ ne nahin kiya.लेकिन मैं अपने उत्तर से पूरी तरह संतुष्ट thi., किसी भी मामले में, मैं इस बात से संतुष्ट thi कि मैंने अपना व्यवसाय बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त नहीं किया balki sacchai nka samna kiya aur unko sahi rasta dikhane ki koshish ki.

उम्मीद है कि आज के माता-पिता इस satya tatha tathya को स्वीकार करेंगे और अपने जीवन में khusi Khushi आगे बढ़ेंगे।

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